
विपत्तियों आती ही हैं रिश्तों को फिर से परिभाषित करने के लिए. अगर 1947 के बँटवारे के रूप में आई विपत्ति ने हमारे रिश्तों को दुश्मनी का नाम दिया तो शायद 2005 का भूकंप हमारे रिश्तों को दोस्ती का जामा पहनाना चाहता है. दोनों तरफ के हुक़्मरान कुदरत के दिये इस मौके को पहचानें और रिश्तों में एक ऐसा जलाजला पैदा करें जो दुश्मनी की बुनियाद को नेस्तनाबूत कर दे. शशि सिंह, मुम्बई
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