Friday, December 16, 2005
क्या गांगुली के साथ अन्याय हुआ?
गुरुवार, 15 दिसंबर, 2005 को प्रकाशित
यूँ तो और भी ग़म हैं जमाने में गांगुली के सिवा... पर क्या करें महाराजा का जो ग़म है चर्चे तो होंगे ही. डालमिया राज में गांगुली का बुरे प्रदर्शन के बाद भी बने रहना राजनीति थी और आज पवार के राज में संतोषजनक प्रदर्शन के बाद भी बेआबरू कर टीम से निकाले जाना भी राजनीति ही है. लिहाजा इसमें किसी भी तरह का कोई तर्क ढूंढ़ना बेकार है. तरस आता है गांगुली जैसे उन बेहतरीन खिलाड़ियों पर जो क्रिकेट की राजनीति का शिकार होते हैं. शशि सिंह, मुंबई
Wednesday, November 30, 2005
भाजपाः एक प्याले में खुशी एक में ग़म
मंगलवार, 29 नवंबर, 2005 को प्रकाशित
यह कहना ग़लत होगा कि भाजपा को बिहार में हुए चुनाव के नतीजों से संजीवनी मिली है. वहाँ जनादेश लालू के खिलाफ और कुछ हद तक नीतीश कुमार की पार्टी को मिला है. लिहाज़ा केद्र की सत्ता हाथ से निकलने के बाद भ्रमित भाजपा की सेहत पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ने वाला. भाजपा की सच्चाई बिहार की जीत नहीं, मध्य प्रदेश का कलह है. कांग्रेस पर गांधी परिवार से आगे नहीं सोच पाने का आरोप लगाने वाली भाजपा ने भी अटल-आडवाणी से आगे नहीं सोच पाने की आदत डाल ली है, जो आज भाजपा के भविष्य पर भारी पड़ रहा है. शशि सिंह, मुंबई
Friday, November 25, 2005
बीबीसी हिंदी डॉटकॉम आपकी नज़र में
शनिवार, 26 नवंबर, 2005 को प्रकाशित
बीबीसी हिंदी की तारीफ़ करने बैठूँ तो पूरा पन्ना कम पड़े इसलिए सीधे अपेक्षाओं पर आ जाता हूँ. यहाँ अपेक्षाएँ पूरी होती हैं इसलिए बेझिझक अपनी मांगें रख रहा हूँ. 1- इंटरनेट पर रेडियो कार्यक्रमों की ऑडियो फ़ाइल को रैम के अलावा वेव और एमपी3 फ़ॉरमैट में भी उपलब्ध करवाएँ. 2- हिंदी के नाम पर जहाँ हर तरफ़ हिंग्लिश की अंधी गलियाँ हैं ऐसे में इस साइट पर संदर्भ स्रोत की भी ज़िम्मेदारी है लिहाज़ा जिस तरह आपने Learning English का पन्ना रखा है वैसा ही कुछ 'अच्छी हिंदी' के प्रसार के लिए भी करें. 3- एक वक़्त था जब इंटरनेट पर हिंदी बमुश्किल ही देखने को मिलती थी पर आज इसका काफी विकास हो चुका है. इस विकास से जुड़ी सूचनाओं के भूखों की निगाहें भी आपकी ओर हैं. 4- ट्रांजिस्टर के दौर से मीलों आगे आ चुके बीबीसी हिंदी से ब्लॉगिंग और पॉडकास्टिंग की दुनिया की ख़बरें भी अपेक्षित हैं. शशि सिंह, मुंबई.
Friday, October 28, 2005
सीबीआई जाँच से कितनी उम्मीद?
शुक्रवार, 28 अक्तूबर, 2005 को प्रकाशित
साँप के गुज़र जाने के बाद लकीर पीटने की कहावत सुनी थी. लकीर मिटने के बाद साँप को ढूँढने जैसी कहावत अगर कभी गढ़ी गई तो उसकी मिसाल के तौर पर सिख विरोधी दंगों का ज़िक्र ज़रूर होगा. शशि सिंह, मुंबई
Friday, October 21, 2005
क्या ये विपत्ति अवसर लेकर आई है?
शुक्रवार, 21 अक्तूबर, 2005 को प्रकाशित
विपत्तियों आती ही हैं रिश्तों को फिर से परिभाषित करने के लिए. अगर 1947 के बँटवारे के रूप में आई विपत्ति ने हमारे रिश्तों को दुश्मनी का नाम दिया तो शायद 2005 का भूकंप हमारे रिश्तों को दोस्ती का जामा पहनाना चाहता है. दोनों तरफ के हुक़्मरान कुदरत के दिये इस मौके को पहचानें और रिश्तों में एक ऐसा जलाजला पैदा करें जो दुश्मनी की बुनियाद को नेस्तनाबूत कर दे. शशि सिंह, मुम्बई
विपत्तियों आती ही हैं रिश्तों को फिर से परिभाषित करने के लिए. अगर 1947 के बँटवारे के रूप में आई विपत्ति ने हमारे रिश्तों को दुश्मनी का नाम दिया तो शायद 2005 का भूकंप हमारे रिश्तों को दोस्ती का जामा पहनाना चाहता है. दोनों तरफ के हुक़्मरान कुदरत के दिये इस मौके को पहचानें और रिश्तों में एक ऐसा जलाजला पैदा करें जो दुश्मनी की बुनियाद को नेस्तनाबूत कर दे. शशि सिंह, मुम्बई
Wednesday, October 19, 2005
क्या बिहार में कुछ बदलेगा?
बुधवार, 19 अक्तूबर, 2005 को प्रकाशित
बिहार में मौजूदा राजनीतिक विकल्पों से किसी चमत्कार की उम्मीद करना भोलापन होगा. वैसे भी बिहारी जनता अब भोली नहीं रह गई है. अब वे अपनी समस्याओं का समाधान राजनीति से इतर तलाशने में लग गई है. यही बात पूरे राजनीतिक परिवेश के लिए पहेली बनी हुई है. दुनिया को गणतंत्र का उपहार देने वाला बिहारी समाज संभवत: किसी नई व्यवस्था की बुनावट में लगा है. इसीलिए हमें दिल थामकर बिहार और बिहारियों पर नज़र रखनी होगी. शशि सिंह, मुंबई
Sunday, October 16, 2005
क्या गांगुली को दोबारा मौका मिलना चाहिए?
रविवार, 16 अक्तूबर, 2005 को प्रकाशित
इसमें कोई शक नहीं कि गांगुली ने भारतीय क्रिकेट को अपने अंदाज में नई ऊँचाई तक पहुँचाया है. लेकिन एक महान खिलाड़ी होने का ये क़तई मतलब नहीं कि बुरे प्रदर्शन के बाद भी वह टीम में बना रहे. अगर गांगुली का खेल दोबारा से अपने सुनहरे दिनों की तरफ लौटता है तो उन्हें फिर से कप्तान के रूप में देखना हर भारतीय की चाहत होगी... लेकिन तब तक चयनकर्ताओं को उन्हें कप्तान तो क्या टीम में भी रखने से पहले चार बार सोचना चाहिए. शशि सिंह, मुम्बई
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