
सोमवार, 13 जून, 2005 को प्रकाशित
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दंभ भरने वाले भारत के लिए 'खास' और 'आम' कानून दुर्भाग्य की बात है. इस तरह का दोहरा व्यवहार ही वंचित वर्ग में असंतोष का बीज बोता है. यही बीज जब पेड़ बन जाते हैं तब उसे अलगाववादी, आतंकवादी, नक्सली और न जाने क्या-क्या नाम दे दिये जाते हैं. भई बात सीधी है, झोपड़े का हक़ मार कर बंगलों की चारदीवारी ऊंची करनेवाले राजकीय कानून को भले तोड़-मरोड़ लें, मगर प्रकृति के न्याय से बच नहीं पाएंगे. शशि सिंह, मुम्बई
No comments:
Post a Comment