
सोमवार, 16 मई, 2005 को प्रकाशित हड़ताल बेशक एक अनुत्पादक और नकारात्मक प्रतिक्रिया है. यह संस्थान और कर्मचारियों के आपसी हितों के टकराव का सतह पर आ जाने सूचक भी है. इसे अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र का द्वंद्व भी माना जा सकता है. मेरा मानना है कि इस नाजुक मुद्दे पर दोनों पक्षों को लाभ-हानि और अहं के संकुचित दायरे से ऊपर उठकर सोचने की जरुरत है. ऐसा करके ही इस दुनिया को प्रगतिशील और सौहार्दपूर्ण जगह बनाई जा सकती है. शशि सिंह, मुम्बई
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