Friday, October 28, 2005

सीबीआई जाँच से कितनी उम्मीद?


शुक्रवार, 28 अक्तूबर, 2005 को प्रकाशित
साँप के गुज़र जाने के बाद लकीर पीटने की कहावत सुनी थी. लकीर मिटने के बाद साँप को ढूँढने जैसी कहावत अगर कभी गढ़ी गई तो उसकी मिसाल के तौर पर सिख विरोधी दंगों का ज़िक्र ज़रूर होगा. शशि सिंह, मुंबई

Friday, October 21, 2005

क्या ये विपत्ति अवसर लेकर आई है?

भूकंप पीड़ितशुक्रवार, 21 अक्तूबर, 2005 को प्रकाशित
विपत्तियों आती ही हैं रिश्तों को फिर से परिभाषित करने के लिए. अगर 1947 के बँटवारे के रूप में आई विपत्ति ने हमारे रिश्तों को दुश्मनी का नाम दिया तो शायद 2005 का भूकंप हमारे रिश्तों को दोस्ती का जामा पहनाना चाहता है. दोनों तरफ के हुक़्मरान कुदरत के दिये इस मौके को पहचानें और रिश्तों में एक ऐसा जलाजला पैदा करें जो दुश्मनी की बुनियाद को नेस्तनाबूत कर दे. शशि सिंह, मुम्बई

Wednesday, October 19, 2005

क्या बिहार में कुछ बदलेगा?

बिहार विधानसभा
बुधवार, 19 अक्तूबर, 2005 को प्रकाशित
बिहार में मौजूदा राजनीतिक विकल्पों से किसी चमत्कार की उम्मीद करना भोलापन होगा. वैसे भी बिहारी जनता अब भोली नहीं रह गई है. अब वे अपनी समस्याओं का समाधान राजनीति से इतर तलाशने में लग गई है. यही बात पूरे राजनीतिक परिवेश के लिए पहेली बनी हुई है. दुनिया को गणतंत्र का उपहार देने वाला बिहारी समाज संभवत: किसी नई व्यवस्था की बुनावट में लगा है. इसीलिए हमें दिल थामकर बिहार और बिहारियों पर नज़र रखनी होगी. शशि सिंह, मुंबई

Sunday, October 16, 2005

क्या गांगुली को दोबारा मौका मिलना चाहिए?

चैपल और गांगुली
रविवार, 16 अक्तूबर, 2005 को प्रकाशित
इसमें कोई शक नहीं कि गांगुली ने भारतीय क्रिकेट को अपने अंदाज में नई ऊँचाई तक पहुँचाया है. लेकिन एक महान खिलाड़ी होने का ये क़तई मतलब नहीं कि बुरे प्रदर्शन के बाद भी वह टीम में बना रहे. अगर गांगुली का खेल दोबारा से अपने सुनहरे दिनों की तरफ लौटता है तो उन्हें फिर से कप्तान के रूप में देखना हर भारतीय की चाहत होगी... लेकिन तब तक चयनकर्ताओं को उन्हें कप्तान तो क्या टीम में भी रखने से पहले चार बार सोचना चाहिए. शशि सिंह, मुम्बई

Friday, October 14, 2005

क्या सीमाओं पर लचीला रुख़ अपनाया जाए?

भूकंप पीड़ित
शुक्रवार, 14 अक्तूबर, 2005 को प्रकाशित
बेशक भूकंप के ज़रिये भगवान ने दोनों मुल्कों में बसे अपने चहेतों को हमसे दूर अपने दरबार में बुला लिया है. मगर अवाम को उनका एक साफ़ संदेश है; अपने आँसुओं के ज़रिये रिश्तों पर जमीं गर्द को धो डालो. शशि सिंह, मुम्बई

Monday, October 10, 2005

भारत और पाकिस्तान में भूकंप की त्रासदी

भूकंप पीड़ित
सोमवार, 10 अक्तूबर, 2005 को प्रकाशित
थोड़ी सी ताक़त मिलते ही हम दुनिया फ़तह करने के मंसूबे बाँधने लगते हैं. इसी अहम में कुदरत को कमज़ोर और बेबस समझ उसे रौंदने की हिमाकत करने से भी नहीं चूकते... पर भूल जाते हैं कि हर किसी के सब्र की इंतहा होती है. पिछले एक साल में पूरी दुनिया में कुदरत के क़हर से हुई तबाही के आंकड़ों ने हमें हमारी औकात बता दी है. ताज़ा भूकंप भी कुदरत को हमसे मिले दर्द की प्रतिक्रिया भर है. शशि सिंह, मुम्बई.